27 Jan 2012
17 Jan 2012
'नदी और साबुन' का आशय स्पष्ट होने के लिए कविता का शेष अंश का भी पढ़ना अनिवार्य है। पढ़िए कविता का शेष अंश-
नदी और साबुन ' कविता का शेष अंश
एक नीली साबुन-बट्टी
वह एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का
बहुप्रचलित साबुन है।
दुखियारी महतारी है गंगा
उसका जी काँपता है डर से
उसकी प्रतिद्वंद्वी हथेली-भर की वह
जो साबुन की टिकिया है
इजारेदार पूँजीवाद की बिटिया है
उसका बलाबली झाग उठने से पहले गंगा के दिल में हौल उठता है।
(महतारी : माँ, महाबली : अत्यंत बली, बट्टी : छोटी गोल लोटिया-टिकिया, इजारे दार : ठेकेदार, हौल : डर,भय)
16 Jan 2012
15 Jan 2012
3 Jan 2012
Subscribe to:
Posts (Atom)