नदी और साबुन ' कविता का शेष अंश
एक नीली साबुन-बट्टी
वह एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का
बहुप्रचलित साबुन है।
दुखियारी महतारी है गंगा
उसका जी काँपता है डर से
उसकी प्रतिद्वंद्वी हथेली-भर की वह
जो साबुन की टिकिया है
इजारेदार पूँजीवाद की बिटिया है
उसका बलाबली झाग उठने से पहले गंगा के दिल में हौल उठता है।
(महतारी : माँ, महाबली : अत्यंत बली, बट्टी : छोटी गोल लोटिया-टिकिया, इजारे दार : ठेकेदार, हौल : डर,भय)
धन्य हैं। बधाइयॉं।
ReplyDeleteമലപ്പുറം ജില്ലാപഞ്ചായത്തിന്റെ സഹപാഠിപോലെ കണ്ണുര്ജില്ലയുടേതും
ReplyDeleteചിരാഗില് പ്രതീക്ഷിക്കുന്നു