-->
राष्ट्रभाषा
और राजभाषा
हिंदी
दिवस के अवसर पर आपको हार्दिक
शुभकामनाएँ। हम हिंदी अध्यापकों
के बीच में भी राष्ट्रभाषा
और राजभाषा संबंधी असमंजस
दिखाई पड़ता है। इसलिए मैं
यह लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ।
क्योंकि हिंदी अध्यापकों में
बहुमत ऐसा
विश्वास करते हैं कि हिंदी भारत की एकमात्र राष्ट्रभाषा है। लेकिन यह एक गलत धारणा है। क्योंकि हिंदी के संबंध में हमारे संविधान में ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया गया है। संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई हैं। पहले यह 15 भाषाएँ थीं, फिर 3 और भाषाएँ जोड़कर 18, अंत में 4 और भाषाएँ जोड़कर अब 22 भाषाएँ हैं। इन सभी भाषाओं को राष्ट्रभाषाएँ मान सकते हैं। अर्थात् संविधान के द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएँ राष्ट्रभाषाएँ हैं। ऐसा है तो हमारी हिंदी भाषा का महत्व क्या है? हम इस पर विचार करें। हिंदी हमारे संघ की राजभाषा है। देवनागरी लिपि में लिखी जानेवाली खड़ीवोली हिंदी भाषा को भारत की राजभाषा की मान्यता 1949 में सितंबर 14 को भारतीय संसद के द्वारा दी गई थी। वही इस भाषा का महत्व है। इसलिए 'हिंदी हमारी एकमात्र राष्ट्रभाषा है' बताना ठीक नहीं है। राजभाषा के रूप में मान्यता ही महत्वपूर्ण है। मेरा विश्वास है कि यह 'राष्ट्रभाषा' एक कल्पना मात्र है। भारत अनेकों भाषाएँ प्रचलित एक विशाल देश है। विभिन्न प्रांतीय भाषाओं के आधार पर राज्यों का विभाजन हुआ है। विभिन्न भाषा-भाषी एकसाथ मिलते समय हिंदी भाषा में विचार विनिमय करें तो यह एक अच्छी संपर्क भाषा बनेगी। एक हद तक ऐसा ही हो रहा है। भारत के सभी नागरिक यह भाषा जानें, इस भाषा में विचार विनिमय करने की क्षमता प्राप्त करें। तभी यह एक अच्छी संपर्क भाषा का स्थान प्राप्त करेगी। लेकिन इसके लिए हमारे शासकों को भी इसके प्रचार में ज्यादा महत्व देना चाहिए और शनै-शनै अंग्रेज़ी का बोलबाला कम कर देना चाहिए। लेकिन भूगोलीकरण, भूमंडीकरण, उदारीकरण आदि के इस ज़माने में अन्य देशों के लोग बड़ी संख्या में यहाँ आ धमकते हैं और वे हमारी भाषा सीखने के बदले में हम उनकी भाषा सीख रहे हैं। इसमें एक हद तक हम चीन के लोगों का अनुकरण कर सकते हैं। क्योंकि ओलिंपिक खेल चलाते समय भी वे विदेशी भाषाओं में नहीं, अपनी ही भाषा में कार्य चला रहे थे। अन्य भाषाओं को स्वीकार करने के बदले में अपनी भाषा सिखाने के लिए व्यवस्था कर रहे थे। जो भी हो, यह भाषा भारत में सबसे अधिक लोगों की भाषा है। उत्तर भारत के ज़्यादातर अहिंदी भाषी लोग उनकी मातृभाषा के साथ हिंदी भी जानते हैं। वे हिंदी में काम चला सकते हैं। गाँधीजी भी इस भाषा के प्रचार में लगे थे। भारत के बाहर भी अनेकों विश्वविद्यालयों में यह भाषा पाठ्यविषय है। आजकल ऐसा बताया जा रहा है कि हिंदी अंग्रेज़ी को पीछे छोड़कर विश्व की सबसे बड़ी दूसरी भाषा बनी है। धन्यवाद। जय हिंद। जय हिंदी।
विश्वास करते हैं कि हिंदी भारत की एकमात्र राष्ट्रभाषा है। लेकिन यह एक गलत धारणा है। क्योंकि हिंदी के संबंध में हमारे संविधान में ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया गया है। संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई हैं। पहले यह 15 भाषाएँ थीं, फिर 3 और भाषाएँ जोड़कर 18, अंत में 4 और भाषाएँ जोड़कर अब 22 भाषाएँ हैं। इन सभी भाषाओं को राष्ट्रभाषाएँ मान सकते हैं। अर्थात् संविधान के द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएँ राष्ट्रभाषाएँ हैं। ऐसा है तो हमारी हिंदी भाषा का महत्व क्या है? हम इस पर विचार करें। हिंदी हमारे संघ की राजभाषा है। देवनागरी लिपि में लिखी जानेवाली खड़ीवोली हिंदी भाषा को भारत की राजभाषा की मान्यता 1949 में सितंबर 14 को भारतीय संसद के द्वारा दी गई थी। वही इस भाषा का महत्व है। इसलिए 'हिंदी हमारी एकमात्र राष्ट्रभाषा है' बताना ठीक नहीं है। राजभाषा के रूप में मान्यता ही महत्वपूर्ण है। मेरा विश्वास है कि यह 'राष्ट्रभाषा' एक कल्पना मात्र है। भारत अनेकों भाषाएँ प्रचलित एक विशाल देश है। विभिन्न प्रांतीय भाषाओं के आधार पर राज्यों का विभाजन हुआ है। विभिन्न भाषा-भाषी एकसाथ मिलते समय हिंदी भाषा में विचार विनिमय करें तो यह एक अच्छी संपर्क भाषा बनेगी। एक हद तक ऐसा ही हो रहा है। भारत के सभी नागरिक यह भाषा जानें, इस भाषा में विचार विनिमय करने की क्षमता प्राप्त करें। तभी यह एक अच्छी संपर्क भाषा का स्थान प्राप्त करेगी। लेकिन इसके लिए हमारे शासकों को भी इसके प्रचार में ज्यादा महत्व देना चाहिए और शनै-शनै अंग्रेज़ी का बोलबाला कम कर देना चाहिए। लेकिन भूगोलीकरण, भूमंडीकरण, उदारीकरण आदि के इस ज़माने में अन्य देशों के लोग बड़ी संख्या में यहाँ आ धमकते हैं और वे हमारी भाषा सीखने के बदले में हम उनकी भाषा सीख रहे हैं। इसमें एक हद तक हम चीन के लोगों का अनुकरण कर सकते हैं। क्योंकि ओलिंपिक खेल चलाते समय भी वे विदेशी भाषाओं में नहीं, अपनी ही भाषा में कार्य चला रहे थे। अन्य भाषाओं को स्वीकार करने के बदले में अपनी भाषा सिखाने के लिए व्यवस्था कर रहे थे। जो भी हो, यह भाषा भारत में सबसे अधिक लोगों की भाषा है। उत्तर भारत के ज़्यादातर अहिंदी भाषी लोग उनकी मातृभाषा के साथ हिंदी भी जानते हैं। वे हिंदी में काम चला सकते हैं। गाँधीजी भी इस भाषा के प्रचार में लगे थे। भारत के बाहर भी अनेकों विश्वविद्यालयों में यह भाषा पाठ्यविषय है। आजकल ऐसा बताया जा रहा है कि हिंदी अंग्रेज़ी को पीछे छोड़कर विश्व की सबसे बड़ी दूसरी भाषा बनी है। धन्यवाद। जय हिंद। जय हिंदी।
रवि.
एम.,
सरकारी
हायर सेकंडरी स्कूल,
कडन्नप्पल्लि,
कण्णूर।
हिन्दी बांग्ला गुजराती बोडो, डोगरी मणि मराठी।
ReplyDeleteकोंकणी असमिया नेपाली उर्दू, सिंधी संथाली आती॥
तमिल तेलगू कन्नड़ मलयालम,संस्कृत पंजाबी उड़िया।
कश्मीरी मैथिली छोड़ चुके, अब पढ़ती मेरी गुड़िया॥
संविधान द्वारा मान्यताप्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाएँ
From Book Bhoolana Bhool Jaaoge