27 Sept 2012

No. 82 कविता - प्यार का दुश्मन

             पयार का दुश्मन
वह नीली - नीली देह,
वे हरी - भरी आँखें,
पहना है ओसोण का चशमा ।
पैरों तक लटकता नदी रूपी बालर,
यह युवती है हमारी पृथ्वी,
उससे प्यार करता सूरज,
है पृथ्वी उसकी अच्छी सहेली ।
सूरज को प्यार था उसकी आँखों से,
वही आँखें जो हिरयाली से भरी थीं
चाहता था उसी आँखों को सूरज ।
बहते हैं उन आँखों से आँसू अब,
हो चुका उसका चश्मा नाकाम,
झड गये नदी रूपी बाल सारे ।
       आ गया सूरज का प्यार सफल,
       पर नहीं रही पृथ्वी अब तक ।
                        Aswin Ratheesh
                        +1 Science
                        Tagore Vidya Niketan, GHSS
                        Taliparamba. Kannur

2 comments:

  1. കവിത വളരെ നന്നായിട്ടുണ്ട്.അഭിനന്ദനങ്ങള്‍.

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